जब एक ही स्थान पर एक साथ दो धर्मों के पवित्र और तीर्थ स्थानों के दर्शन हों तो भला किसे नागवारा होगा। हिमाचल के कुल्लू से 35 किलोमीटर दूर और समुद्र तल से लगभग 1760 मीटर की ऊँचाई पर स्थित धर्मिक स्थल मणिकरण ,जहां हिंदुओं के भगवान शिव का प्रसिद्ध मंदिर और सिखों के धार्मिक गुरु गुरु नानकदेव की याद में बना गुरुद्वारा।

मणिकरण की खूबसूरती का जिक्र आपको पौराणिक कथाएँ में भी मिलेगा। इसकी खूबसूरती और ख़ासियत दोनों आपको काफी आकर्षक करेंगे। मणिकर्ण अपनी खूबसूरती और धार्मिक स्थल के साथ साथ अपने गर्म पानी के चश्मों के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। इस चश्मे के पानी में स्नान करने से जो चर्म रोग या गठिया जैसे रोगों को काफी आराम होता है।

ऐसा माना जाता है कि यहां उपलब्ध गंधकयुक्त गर्म पानी में कुछ दिन स्नान करने से ये बीमारियां ठीक हो जाती हैं। खौलते पानी के चश्मे मणिकर्ण का विशेष आकर्षण हैं क्यों कि एक ओर जहां पार्वती नदी की ठंढी जल धारा बह रही है दूसरी ओर वहीं इतना खोलता पानी जिसमे कच्चा चावल हो या दाल सबकुछ 10 मिनट में पक जाए, सबको अचंभित करता है।

मणिकरण गुरुद्वारा: मणिकरण साहिब गुरुद्वारा

सिखों के धार्मिक स्थलों में यह स्थल काफी विशेष स्थान रखता है। गुरुद्वारा मणिकरण साहिब गुरु नानकदेव की यहां की यात्रा की स्मृति में बना था। जनम सखी और ज्ञानी ज्ञान सिंह द्वारा लिखी तवारीख गुरु खालसा में इस बात का उल्लेख है कि गुरु नानक ने भाई मरदाना और पंच प्यारों के साथ यहां की यात्रा की थी। कथाओं के अनुसार सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी अपने अनुयायी भाई मर्दाना के साथ तीसरी उदीसी के दौरान 1574 में यहां आए थे। मर्दाना को भूख लगी थी लेकिन भोजन नहीं था।

इसलिए उसको गुरु नानक जी द्वारा लंगर के लिए भोजन एकत्र करने के लिए भेजा था। इसके बाद रोटियां बनाने के लिए लोगों ने आटा दान किया था। सामग्री होने के बावजूद वे आगे की के कारण भोजन को पकाने में असमर्थ थे। इसके बाद गुरु नानक जी ने मर्दाना को एक पत्थर उठाने के लिए कहा और ऐसा करते ही एक गर्म पानी का झरना निकल आया, इसके बाद मर्दाना ने रोटियों को गर्म पानी के झरने में डाल दिया। इसके बाद गुरु नानक जी के कहने पर मर्दाना ने भगवान से प्रार्थना की और कहा कि अगर उसकी रोटी वापस तैर कर आ गई तो वो एक रोटी भगवान को दान करेगा। जब उसने प्रार्थना की तो पकी हुई रोटी पानी पर तैरने लगी। गुरु नानक जी ने कहा कि अगर कोई भी भगवान् के नाम पर कोई दान करता है तो उसका डूबता हुआ सामान वापस तैरने लगता है।

Himachal Pradesh: Gurudwara Manikaran & Lord Shiva Temple Story & Handy Guide

मनिकरण शिव मंदिर: Shiv Mandir, Manikaran (शिव मंदिर, Manikaran)

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव अपने विवाह के पश्चात एक बार शिवजी तथा पार्वतीजी घूमते-घूमते इस जगह पहुचे तो उन्हें यह जगह इतनी अच्छी लगी कि वे यहां ग्यारह हजार वर्ष तक निवास करते रहे।एक बार स्नान करते हुए माँ पार्वती के कान की मणि पानी मे गिर तेज धार के साथ पाताल पहुंच गयी।

मणि ना मिलने से परेशान पावर्ती जी ने शिव जी को कहा, तब शिवजी ने अपने तीसरे नेत्र को खोल शेषनाग को इसे ढूंढने के आदेश दिया, जिसके बाद शेष नाग ने अपने फुफकार से पाताल लोक से सभी मणि और रत्न निकल दिए और देवी पार्वती की मणि उन्हें सौंप दिया।शेषनाग में फुफकार से निकले करोड़ो मणियों की वजह से ही इस जगह का नाम “मणिकरण” पड़ा। इस जगह के लगाव के कारण ही भगवान शिव ने जब काशी की स्थापना की तो वहां भी नदी के घाट का नाम मणिकर्णिका घाट रक्खा। मणिकरण के इस क्षेत्र को अर्द्धनारीश्वर क्षेत्र भी कहते हैं। कहते हैं यह स्थान समस्त सिद्धीयों का देने वाला स्थान है।

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