
जब बात आस्था की हो तो हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं जिनकी हम अपनी मान्यताओं के अनुसार पूजा करते हैं। लेकिन हिन्दू शास्त्रों में 3 देवों को सबसे प्रमुख देव बताया गया है।
” ब्रह्म, विष्णु, महेश ” जिसमें भगवान ब्रह्मा पुरी सृष्टि के सृजन कर्ता यानी रचना करने वाले देव माने जाते हैं, भगवान विष्णु पालक कर्ता और भगवान महेश विलय करने वाले देवता माने जाते हैं। लेकिन क्या आपको मालूम है कि भगवान विष्णु और महेश यानी शिव शंकर की प्रसिद्ध स्थल और मंदिर कई जगहों पर मिल जाएंगे लेकिन ब्रह्मा की नहीं। सोचने वाली बात है ना कि सृष्टि के रचयिता की एक भी मंदिर नहीं ?
चलिए आपको बताते हैं कि आखिर कहां है भगवान ब्रह्मा का प्रसिद्ध और एकलौता पवित्र मंदिर ‘ पुष्कर ‘ पुष्कर पूरे भारत में ही नहीं विश्व में एकलौता ऐसा पूज्य स्थल है जहां ब्रह्मा देव का मंदिर मौजूद है।
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चारो तरफ अरावली पहाड़ियों से घिरे पुष्कर ही एकलौता पवित्र स्थल है जहां ब्रहा देव की पूजा होती है। पुष्कर का वर्णन पद्मपुराण, रामायण,जैसे कई ग्रंथो में मौजूद है। सात्विकता और पौराणिक कथाओं के समागम के साथ पुष्कर एक बहुत ही खूबसूरत और शांत स्थान है। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार ब्रह्मा देव से भी भारी भूल हो गई थी। एक ऐसी गलती जिसकी वजह से उन्हें हमेशा हमेशा के लिए अकेला रहना पड़ गया।
हुआ कुछ यूं कि एक बार जब ब्रह्मा देव ने सृष्टि की रचना के लिए पुष्कर में यज्ञ का आयोजन किया तब इस यज्ञ में पत्नी का बैठना जरूरी था, लेकिन ब्रह्मा देव की पत्नी सावित्री को पहुंचने में काफी देरी होने लगी और पूजा का शुभ मुहूर्त बीतता जा रहा था। सभी देवी-देवता एक-एक करके यज्ञ स्थली पर पहुंचते गए, लेकिन सावित्री देवी नहीं पहुंचीं। कहते हैं कि जब शुभ मुहूर्त निकलने लगा, तब ब्रह्मा देव को कोई उपाय नहीं दिखा ,फिर उन्होंने नंदिनी गाय के मुख से गायत्री को प्रकट किया और उनसे विवाह कर अपना यज्ञ पूरा कर लिया। लेकिन उधर सावित्री जब यज्ञस्थली पहुंचीं, तो वहां ब्रह्मा के बगल में गायत्री को बैठे देख क्रोधित हो गईं और उन्होंने ब्रह्मा को श्राप दिया कि वह सिर्फ यहीं पूजे जाएंगे और फिर ब्रह्मा देव यहीं रह गए।
सावित्री का गुस्सा इतने में ही शांत नहीं हुआ और उन्होंने विवाह कराने वाले ब्राह्मण को भी श्राप दिया कि चाहे जितना दान मिले, ब्राह्मण कभी संतुष्ट नहीं होंगे। इसके बाद सावित्री देवी ने गाय को भी कलियुग में गंदगी खाने और नारद को आजीवन कुंवारा रहने का श्राप दिया। इस समय सावित्री देवी के कोप से अग्निदेव भी नहीं पाए। उन्हें भी कलियुग में अपमानित होने का श्राप मिला। क्रोध शांत होने के बाद सावित्री पुष्कर के पास मौजूद पहाड़ियों पर जाकर तपस्या में लीन हो गईं और फिर वहीं की होकर रह गईं।
कहते हैं कि यहीं रहकर सावित्री भक्तों का कल्याण करती हैं। यहां जाने के लिए आपको रोपवे का इस्तेमाल करना होगा। इस मंदिर तक पहुंचने का रास्ता पहाडियों से होकर जाता है और मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग एक घंटे का समय लग जाता है। यह पहाडियों के शीर्ष पर, ब्रहमा जी के मंदिर के ठीक पीछे स्थित है। इस मंदिर से झील का सुरम्य दृश्य दिखाई पड़ता है और पुष्कर गांव का खूबसूरत नजारा देखने को मिलेगी।
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